उड़ान


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अक्टूबर का महीना शुरू हो गया था और ठण्ड भी बढ़ने लगी थी। इसी समे में मैं ख्यालों में सोच रहा था की, वतन  विदेश से वापिस आके एक अलग सकूं सा मिलता है, कुछ यादें ताज़ी हो जाती है और कुछ नयेपल यादों की कसौटी में उतरते है। कुछ यही उमीदें लेके मैं प्लेन में बैठा था और मेरे बगल वाली सीट पे एक जनाब आके बैठे। रास्ता लम्बा था तो सोचा की क्यों ना थोड़ी सी गुफ्तगू की जाए।

हमने अंग्रेजी में बात चीत शुरू की, हाल-चाल, कारो-बार जो अक्सर लोग पूछते हैं सब पुछा। जनाब बता रहे थे की वह भूगोल के प्रोफेसर, सान फ्रांससीसो की सरकारी यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं। अभी बातों का सिलसिला बढ़ा ही था तो उनकी बगल वाली सीट में भी हमारे पडोसी देश के नवाब बिराजमां हुए, वह भी वार्तालाप का हिस्सा बनने लगे। बात घुमते घुमते तियोहारो पे गयी। हमने बताया की दिवाली के विश्व में चर्चे हैं, बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत का प्रतीक है ये तयोहार| भूगोल प्रोफेसर जो की श्री लंका से था उसने भी बहुत परसंसा की तयोहार की। वैसे वो राम जी भी कह रहा था और रावण जी भी, थोड़ा सा अटपटा लगा मुझे। हमें अक्सर सिखाया गया था की रावण एक घमंडी , निर्दयी प्रेत है |
हमने कहा की चलो जो भी है भारत तो है ही जहाँ पर सब अच्छा करने वाले पैदा होते है और ज़ुल्म का नाश करते है, राम जी ने तो सारी लंका को कहर से बचा लिया।

"एक्सक्यूज़ मेई!"

प्रोफेसर के साथ वाले जनाब, जो पैदाइशी पाकिस्तान से थे मगर पिछले २० सालों से मनोविगणिक के ओहदे पर काम कर रहे थे उन्हों ने कुछ नजरिया रखा अपना " देखिये जनाब, अगर तर्क के हिसाब से चलें तो  ये धरती एक गोला है, ये उतना ही उसी का है जितना अच्छे इंसान का है और जितना बुरे इंसान का।" उन्हों ने और कहा की " मान लो की रावण हिंदुस्तानी होता और राम लंका का तो क्या होता?"
इस से पहले मैं जवाब देता, लंका वाले ने कहा की " फिर हम भी दशेहरा जलाते और दिवाली मानते और ये रावण की खूबियों की नवाज़ते"

हम तीनो  हसने लगे, इंसान से अक्सर गलती होती है जनाब। फिर बात जारी करते एक और तर्कशील प्रश्न रखा " जो प्रजा लंका में होती थी या अयोध्या में उसपे राजे के शासन का कोई फर्क था ?" तो प्रोफेसर ने भी बहुत नायब उदहारण दी " ये एक जॉब की तरह है, जहाँ पर आप एक एम्प्लायर से लेकर दुसरे एम्प्लायर के लिए काम करते हैं, जिसके बदले हमको पैसा मिलता है, कोई स्ट्रिक्ट होता है तो कोई ढील देता है, हाँ अगर रावण हम जैसे की महीने की पगार मारता था, तो, तो भाई ये गन्दा एम्प्लायर था "

हसी मज़ाक करते करते कुछ संगीन बात भी चिद्द गयी, मैंने मनोविजियनिक से पुछा "आपके अकॉर्डिंग पाप क्या होता है ?" उसने कहा की इसका जवाब तो शयद खुदा के पास ना हो। हमने पुछा " कैसे ?" उन्हों ने उद्धरण दी " मान लो की एक डॉक्टर है, उसको पैसे की तंगी बहुत चल रही है मगर वो म्हणत से पैसे कामना चाहता है, अगर वो खुदा से कहे की आज किरपा कर देना, तो किरपा में भगवान् लोगों को बीमार करेगा?"
मुझे बात समझ नहीं आयी मगर उन्हों ने आगे और कहा की फ़ौज आज के समें की बली है, हर जवान अपने मुल्क के लिए लड़ने भेजा जाता है, वहां जो दुसरे मुल्क वाले जो अपने मुल्क की हिफाज़त में लगे होते हैं, उनसे टक्कर होती है, दोनों मरते हैं, मगर पाप किस मुल्क को लगेगा? जो हार गया या जो जीत गया?"
" मेरे दोस्त, इतिहास हमेशा जीतने वाले के पक्ष को आगे रखता है, श्री राम की फ़ौज ने भी रावण की फ़ौज के बेगुनाहो को मारा होगा और रावण की फ़ौज ने भी, तो पाप क्या है?"

मेरी और प्रोफेसर की बोलती बंद हो चुकी थी। जाते जाते हम दोनों को गले लगा के मनोविगणिक ने कहा " जो हो गया वो खत्म है, आज जो हाथ में है उसको सोचो, मारना इलाज़ नहीं समझाना है।" " हम इस बटवारे हुए देशों में पैदा हुए, ये हमारी गलती नहीं है, मगर अतीत लिए लड़ते रहना है"
"कोई मूर्ती, कोई किताब इंसान से बढ़के नहीं, इंसान से बढ़के कोई खुदा नहीं"

-नव 

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